Sunday, October 24, 2010
जीत को तरस गए कंगारू
Friday, September 10, 2010
नाटक- बेगम जैनाबादी
शरद पगारे द्वारा लिखित उपन्यास 'बेग़म जैनाबादी' पर आधारित एक नाटक का मंचन दिल्ली के श्री राम सेंटर ऑफ़ आर्ट्स में 13 व 14 नवम्बर 2010 को होगा. यह नाटक दिल्ली के क्षितिज थियेटर ग्रुप द्वारा अभिमंचित किया जाएगा. नाटक, मुग़लिया सल्तनत के सबसे विवादास्पद बादशाह औरंगजेब आलमगीर की जिंदगी पर आधारित है. निर्देशिका भारती शर्मा का कहना है की यह नाटक दर्शकों को औरंगजेब की जिंदगी के उन पहलुओं से रूबरू करवाएगा, जिसके बारे में न तो कभी कुछ कहा गया, और न हीं कुछ लिखा गया. यह नाटक लोगों को एक ऐसे औरंगजेब से परिचित कराएगा जिससे ज़्यादातर लोग वाकिफ नहीं हैं. नाटक शाम 7 बजे से शुरू होगा. उम्मीद है आपका साथ मिलेगा.
Saturday, August 14, 2010
सरफ़रोशी की तमन्ना
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
- पं0 राम प्रसाद बिस्मिल
Friday, July 30, 2010
जंग अभी जारी है....
फिर भी जंग जारी है।
इस लड़ाई का मैं मारा,
लड़ रहा हूँ, परस्पर...
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।
क्या जाने क्या कर पाऊंगा,
जाने कौन या यूहीं मिट जाऊँगा.
जिंदगी के दरिया का मैं शानावर,
पायाब की तलाश में...
ज़जीरों से गुज़रता रहा हूँ अक्सर
अपने आप से लड़ने की,
ताक़त अभी बाकी है...
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।
मैं क्या हूँ, मैं कौन हूँ,
अपने अक्स से अंजान,
शायद खुद को 'देवास' की चाहत हो,
ढूंढता हूँ वह जो मेरी राहत हो...
नया जोश भरने के खातिर,
खुद को भट्टी में झोंकने की,
अपनी भी तैयारी है,
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।
पर ठान रखा है कुछ हमने भी,
हैं, और रहेंगे सपने अपने भी।
मुखाल्फ्तों का खौफ नही,
बेकार सिफत का मुझे भी शौक नहीं.
उस उफक को पाने की,
ग़ुरबत अभी बाकी है...
जंग अब भी जारी है,
बहुत मारामारी है।
होंगीं अपने लिए भी बज्में,
यूहीं लिखता रहूँगा नज्में...
सर्फ़ होती जिंदगी की,
मंजिल अभी बाकी है.
बस थोड़ी रजिश की ही दरकारी है,
जंग अब तलक जारी है,
वाकई बहुत मारामारी है...
-देवास दीक्षित 'कृत'
Sunday, June 27, 2010
विजयी भव:
हाल ही में एशिया कप जीतकर आई इस टीम को देखकर शायद ही कोई विश्वास कर सके कि यह वही टीम है, जिसे टी-20 विश्वकप के सुपर-8 चरण में ही बाहर होना पड़ा था. विश्वकप में ख़राब प्रदर्शन की गाज़ खिलाडियों पर गिरी और नाराज़ चयनकर्ताओं ने ज़िंबाबवे दौरे के लिए युवा टीम को मौका दिया. सुरेश रैना की अगुवाई वाली युवा टीम ने यहाँ भी निराश किया. ज़िंबाबवे जैसी टीम से अपने दोनों मैच हारने के बाद टीम बिना फाइनल खेले स्वदेश लौट आई. सीनियर और युवा खिलाड़ियों के ख़राब प्रदर्शन को लेकर चयनकर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती थीं. सामने एशिया कप था, जहाँ भारतीय टीम को श्रीलंका, बांग्लादेश और चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से भिड़ना था. इस बार चयनकर्ताओं ने युवाओं के जोश और सीनियर खिलाड़ियों के होश का काकटेल बनाया. महेंद्र सिंह धोनी को खुद को अच्छा कप्तान साबित करने का आखरी मौका दिया गया. इस बार भारतीय टीम ने किसी को निराश नही किया और चैम्पियनों की तरह खेलते हुए एशिया कप जीत लिया.
भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए मैच हमेशा से खेल प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं. और शायद पूरे एशिया कप में से क्रिकेट प्रेमियों को सबसे ज्यादा इंतजार, इस मैच का ही था. हर बार की तरह इस बार भी इस मैच में वो सब कुछ था जो इन चिर-प्रतिद्वंदियों के मैच में देखने को मिलता है. मैच के बीच में हमेशा की तरह खिलाड़ियों के बीच झड़प हुई जिसमे अम्पायरों ने बीच-बचाव किया. बहरहाल, कड़ी टक्कर, तनाव और बेहद रोमांच से भरे इस मैच को भारत ने 3 विकेट से जीत लिया. इस जीत के साथ ही भारतीय क्रिकेट प्रेमियों में हर्ष की लहर दौड़ गयी. दिल्ली में तो जगह-जगह पटाखे छुटाए गए. दिल्ली के एक क्रिकेट प्रशंसक अमित ने तो यहाँ तक कह डाला कि अब चाहे टीम एशिया कप जीते या हारे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, भारत पाकिस्तान से जीत गया, यह सबसे बड़ी बात है.
पाकिस्तान के अलावा भारतीय टीम ने बांग्लादेश को भी 6 विकेट से करारी मात दी. हालाँकि अपने लीग मैच में, भारतीय टीम को श्रीलंका के हाथों 7 विकेट से हार झेलनी पड़ी, पर फाइनल मैच में भारतीय टीम ने अपनी इस हार का बदला ले लिया. फाइनल मैच में भारत ने श्रीलंका को 81 रन से हराकर ख़िताब पर कब्जा किया. जहाँ फाइनल मैच में 'मैन ऑफ द मैच' दिनेश कार्तिक को दिया गया, वहीं पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी एशिया कप में 88.3 की औसत से 265 रन बनाकर मैन ऑफ द सीरीज़ बने.
इस शानदार और 'कमबैक' जीत से खुश भारतीय चयनकर्ताओं ने 18 जुलाई से श्रीलंका में शुरू होने वाली 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ के लिए भारतीय टीम की घोषणा कर दी है. सचिन तेंदुलकर. राहुल द्रविड़ और वी.वी.एस. लक्ष्मण की 'त्रिमूर्ति' को टीम में शामिल किया है. इनके अलावा सहवाग, धोनी, गंभीर और रैना की मौजूदगी से टीम का बल्लेबाजी क्रम ख़ासा मज़बूत नज़र आ रहा है. ज़िम्बाब्वे और एशिया कप से अपने खराब प्रदर्शन के चलते टीम से बाहर किये गए युवराज सिंह को टीम में शामिल किया गया है. युवराज सिंह की प्रतिभा पर शायद ही किसी को शक हो, पर युवी को यह खुद ध्यान रखना चाहिए की लम्बे अरसे से लगातार युवा खिलाडी टेस्ट टीम के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं. पिछले कई सीज़नों से रणजी ट्राफी में रनों का पहाड़ खड़ा करने वाले चेतेश्वर पुजारा ने हाल ही में इण्डिया 'ए' की तरफ से खेलते हुए इंग्लैंड में दो सेंचुरी लगाई हैं, जिनमे से एक डबल सेंचुरी है. ज़ाहिर है, चयनकर्ता पुजारा के इस प्रदर्शन को ज्यादा देर तक नज़र अंदाज़ नही कर पाएंगे. खुद को साबित करने का, युवराज का यह आखरी मौका साबित हो सकता है. टीम चयन में दूसरे विकेट-कीपर के रूप में व्रिधिमान साहा का चयन समझ से परे है. एशिया कप में 53 की औसत से 106 रन बनाने वाले दिनेश कार्तिक साहा से ज्यादा अनुभवी, विकेट-कीपर हैं. कार्तिक एक अच्छे ओपनर भी हैं, ज़ाहिर है साहा के स्थान पर कार्तिक चयनकर्ताओं के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते थे. गेंदबाजी विभाग में भी ज़हीर और हरभजन को छोड़ कोई भी खास अनुभवी गेंदबाज़ नहीं है. खैर, देखते हैं, इस बार ऊँट किस करवट बैठता है. टेस्ट टीम इस प्रकार है-
महेंद्र सिंह धोनी(कप्तान), वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वी.वी.एस. लक्ष्मण, गौतम गंभीर, मुरली विजय, युवराज सिंह, सुरेश रैना, हरभजन सिंह, ज़हीर खान, इशांत शर्मा, एस. श्रीसंत, अमित मिश्रा, प्रज्ञान ओझा और व्रिधिमान साहा.
-देवास दीक्षित कृत
Wednesday, June 2, 2010
भेजा था बादाम समझके, निकले मूंगफली...!!!
Thursday, April 15, 2010
कभी अलविदा न कहना
वो वक़्त भी आ गया जब मेरे कानो ने पहली बार अपनी पहली कार के हार्न की आवाज़ सुनी। मेरी ख़ुशी के ठिकाने का आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं गेट खोलने ऐसी दशा में गया, कि अगर मुझे उस वक़्त शर्मीला टैगोर देख लेतीं तो या तो मुझे 'ए' सर्टिफिकेट दे डालतीं या खुद शर्मा जातीं। जो भी हो, गेट खुला, और नयी चमचमाती मारूति 800 गेट के अन्दर आ गई. रात काफी हो गयी थी. मैं कार का अलग-अलग कोणों से निरक्षण कर ही रहा था कि, माँ की तरफ से सोने का फरमान जारी हो गया. मजबूरन मुझे सोने जाना पड़ा. सुबह तो मैं खुद को मोहल्ले में बिल गेट्स से कम नही समझ रहा था. उस वक़्त मुझे मारूति भी मर्सडीज़ से कम नही लग रही थी. हम तीनो भाई-बहनों में खिड़की के पास बैठने के लिए झगड़ा होने लगा. मैं बड़ा था, एक खिड़की तो मेरी तय ही थी. सच कहूँ, तो वो दिन मेरे पूरे परिवार के लिए एक बहुत बड़ा दिन था और हो भी क्यों न, हमारा सपना जो पूरा हुआ था.
आज इस बात के लगभग दस साल हो गए हैं, पर उस दिन कि यादें आज भी मेरे मन में वैसी ही ताज़ा हैं, और शायद ताउम्र रहेंगी. मेरी मारूति आज भी मुझे वैसी ही लगती है.
यह तो थी मेरी बात, ऐसे न जाने कितने परिवारों के सपने मारूति ने पूरे किये होंगे.
आज मारूति को हम सबसे विदा लेनी पड़ रही है। 1983 से शुरू हुआ मारुती का यह सफ़र 2010 में लगभग पूरा हो गया है। मारूति 800 की 1 अप्रैल से 13 शहरों में बिक्री बंद हो गयी है. पर मारूति हमेशा मेरे और शायद आपके दिल में रहेगी.
आजतक जो किसी लड़की से नहीं बोल पाया वो बोलना चाहता हूँ,
मारूति आई लव य़ू...! एम् गोंना मिस य़ू बेबी...!!!
देवास दीक्षित 'कृत'
Wednesday, March 3, 2010
भई हद हो गई...!!!
जा रहा था कालेज सुबह,
भाड़ा बस का कम हो गया, हद हो गई...
जगह नहीं थी बस में,
एक सज्जन सीट दे बैठे, हद हो गई...
सोच रहा था, लेट हूँ मैं,
सड़क पर जाम न मिला, हद हो गई...
सबने हंस के बातें की,
गाली-गलौज गायब थी, हद हो गई...
थोड़ी में पता चला,
एल.पी.जी के दाम गिर गए, हद हो गई...
चीनी फिर से सस्ती हो गयी,
महंगाई जग से खो गई, हद हो गई...
अचानक गिर पड़ा बिस्तर से,
नींद मुझे छोड़ गई, हद हो गयी...
अरे कुछ नहीं यार! सपना था...
भई हद हो गयी...!!!
- देवास दीक्षित कृत
Wednesday, February 10, 2010
वह रो क्यों रहा था...???
जनवरी माह की ठण्ड थी. सुबह १० बजे का समय रहा होगा. नहाने के बाद मैं, बालकनी में खड़ा सर्द हवाओं के बीच गुनगुनाती धूप के मज़े ले रहा था. अचानक मेरे कानो में, बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनाई दी. देखा तो सामने से साइकिल पर एक गुब्बारे वाला चला आ रहा था. गुब्बारों के अलावा उसके पास और कई चीज़ें थी, जो छोटे बच्चों को उसकी ओर आकर्षित करती थी. मोहल्लों में, अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए गुब्बारे वाला बांसुरी पर फ़िल्मी गानों की धुनें बजाता रहता.
मोहल्ले के कई बच्चों ने अबतक उसे घेर लिया था. बच्चों की उम्र ३-४ साल की रही होगी. कोई गुब्बारे वाले से डमरू खरीद रहा था, तो कोई बन्दूक ले कर खुश हो रहा था. गुब्बारे वाले से अपनी मनपसन्द चीज़ें खरीद, बच्चे अपनी दुनिया में दुबारा खो गए. गुब्बारे वाला भी वहीं खड़ा होकर सुस्ताने लगा. यह सब मैं अपनी बालकनी से देख रहा था. लगभग पांच मिनट बाद एक छोटा बच्चा रोता हुआ गुब्बारे वाले के पास आया. उस लड़के ने नीले रंग का स्वेटर पहन रखा था. उसके गोरे मोटे गालों से बहते आंसू, मोती से जान पड़ते थे. सुनहरे बालों वाला यह बच्चा किसी ठीक घर का ही लगता था. उसके रोने की आवाज़ बच्चों के खेल में खो रही थी. मुझे किसी ने बताया की दो महीने पहले लड़के के पिता का देहांत हो गया था. वह ही परिवार का भरण-पोषण करते थे. उनके बाद परिवार की हालत बेहद दयनीय हो गई थी. बारह साल की एक लड़की थी, जो किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ती थी. साल के बीच में उसे भी किसी सस्ते स्कूल में नही डाला जा सकता था. उस लड़के की माँ घर में कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर और कुछ सिलाई करके लड़की की स्कूल फीस जुटाती थी. मात्र इसी आमदनी से घर का खर्चा भी चलता था.
उस लड़के को गुब्बारे वाले से चश्मा खरीदना था. शायद चश्मा पांच रूपए का था. उस लड़के ने गुब्बारे वाले से चश्मा माँगा. समाज के नियम-कायदों से अनजान लड़का बेतहाशा रोता जा रहा था. गुब्बारे वाले को देख क्र भी निम्न भारतीय वर्ग के दर्शन होते थे. शायद गरीबी के सांप ने उसे भी डस रखा था. वह भी अमेरिका से आई खैरात बांटने तो निकला नहीं था. अचानक पीछे दौड़ती हुई लड़के की बहन आई. उसने चश्मा दिलाने के लिए अपनी जेबें टटोलीं. कुछ पैसे जोड़े और न जाने क्यूँ भाई को चुपचाप गोद में उठाकर घर की ओर चल दी. पैसे कम पड़ गए होंगे, घर से पैसे लेने गई होगी, यह सोचकर मैं नाश्ता करने अन्दर आ गया. नाश्ता करते वक़्त भी वह लड़का मेरी आँखों के सामने नाच रहा था. बहन की गोद में पाँव पटकता जाता और बेतहाशा रोता जाता. जल्दी से नाश्ता खत्म कर, मैं बाहर आया तो देखा न तो वो बच्चा था, न वो गुब्बारे वाला. हाँ, गली के कोने में कुछ बच्चे खेल ज़रूर रहे थे. सुनहरे बाल वाले बच्चे का घर एक घर छोड़कर था, इसलिए उसके रोने की आवाज़ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी. वह अभी भी रो रहाथा. न जाने क्यों उसकी हर एक चीख मेरे दिल में सवाल पैदा कर रही थी. क्या उस लड़के को चश्मा मिला? अगर हाँ, तो वो रो क्यों रहा था...???
- देवास दीक्षित कृत
Friday, January 29, 2010
दूर है मंजिल नहीं...
ध्येय पथ पर, काफिला राही का सदा चलता रहे...
तू न डर पथ के कंटकों से,
छूते ही अनुभूति होगी फूल की.
चिलचिलाती धूप होगी चांदनी,
वायु भी होगी सदा तेरे अनुकूल ही.
राह हर मंजिल तेरी वरदान तुझको है यही,
मार्ग का हर इक पत्थर पैर नित मलता रहे. ध्येय पथ पर...
बाल, यौवन और वृधा शवान्स के,
ये तीन हैं डग, जिंदगी की चाल के.
इसलिए है कसम तुझे आराम की,
मत पोंछ ये पसीना अपने गाल से.
शवान्स पथ के प्राण राही को दिखाने रास्ता,
हर मनुज आकाश दीपक सा सदा जलता रहे. ध्येय पथ पर...
जो दिख रहे हैं ठेकेदार शान्ति के,
क्यों छिपाए बैठे आग दिल में बैर की.
ताल-सुर सब एक लय में हैं बंधे,
गा रहे मुख से मगर हैं भैरवी.
एक लय हो जाये हमारी रागिनी बस इसलिए,
शोषण का शैतान अश्रु के घूँट सदा पीता रहे. ध्येय पथ पर...
बस लूटने की चाह से प्रतिदिन सभी,
जो घूमे वो बस एक हैवान हैं.
एक रोटी को प्यार से,
बांटकर खाते वही इंसान हैं.
यह सृष्टि है संपत्ति हर कर्मरत इंसान की,
धनवान का शैतान अपने हाथ बस मलता रहे. ध्येय पथ पर...
-देवास दीक्षित कृत