दूर है मंजिल नहीं, ग़र उमंग है प्राण में.
ध्येय पथ पर, काफिला राही का सदा चलता रहे...
तू न डर पथ के कंटकों से,
छूते ही अनुभूति होगी फूल की.
चिलचिलाती धूप होगी चांदनी,
वायु भी होगी सदा तेरे अनुकूल ही.
राह हर मंजिल तेरी वरदान तुझको है यही,
मार्ग का हर इक पत्थर पैर नित मलता रहे. ध्येय पथ पर...
बाल, यौवन और वृधा शवान्स के,
ये तीन हैं डग, जिंदगी की चाल के.
इसलिए है कसम तुझे आराम की,
मत पोंछ ये पसीना अपने गाल से.
शवान्स पथ के प्राण राही को दिखाने रास्ता,
हर मनुज आकाश दीपक सा सदा जलता रहे. ध्येय पथ पर...
जो दिख रहे हैं ठेकेदार शान्ति के,
क्यों छिपाए बैठे आग दिल में बैर की.
ताल-सुर सब एक लय में हैं बंधे,
गा रहे मुख से मगर हैं भैरवी.
एक लय हो जाये हमारी रागिनी बस इसलिए,
शोषण का शैतान अश्रु के घूँट सदा पीता रहे. ध्येय पथ पर...
बस लूटने की चाह से प्रतिदिन सभी,
जो घूमे वो बस एक हैवान हैं.
एक रोटी को प्यार से,
बांटकर खाते वही इंसान हैं.
यह सृष्टि है संपत्ति हर कर्मरत इंसान की,
धनवान का शैतान अपने हाथ बस मलता रहे. ध्येय पथ पर...
-देवास दीक्षित कृत
Friday, January 29, 2010
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बहुत खूब...आपकी कविता पढ़ कर पता चला की हम हैवानों के बिच रहते है...क्योकि आज बाट कर रोटी खाने वाले कम है...
ReplyDeleteलेखनी के लिए शुभकामनाये...
www.bebakbol.blogspot.com
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ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना देवास भाई | शब्दों और भावों का बेजोड़ तालमेल है आपकी रचना में | बहुत अच्छा | पुनः हार्दिक स्वागत एवं ढेरों बधाई...|
ReplyDeleteshabdo ko badi khubi se piro kr kya sateek vyangya kiya h...pad kr kafi acha lga
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