अक्सर कहा जाता हैं कि लड़ो तो खिलाडी जैसे लड़ो. पर भारत देश में, जहाँ खिलाडी सिर्फ क्रिकेटर्स को समझा जाता है, ऐसा कहना सरासर बेईमानी होगी. ऐसे देश में जहाँ क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटर्स को भगवान कहा जाता है, वहाँ इस खेल का बेहद घिनौना रूप, हमें देखने को मिला.
जिन खिलाड़ियों को हमने देवता समझ,लाखों अरमानों और उम्मीदों से टी-20 विश्वकप में खेलने भेजा था, उन्होंने उन सब आशाओं का गला घोंट दिया. कागजों पर खूंखार शेर दिखने वाले भारतीय खिलाडी टीम को सेमीफाइनल में भी नही पहुंचा सके और सुपर-8 चरण में ही बोरिया-बिस्तर समेत वापस स्वदेश लौट आये. तीसरे टी-20 विश्वकप के लिए जब चयनकर्ताओं ने रोबिन उत्थपा, प्रज्ञान ओझा सरीखे युवाओं को दरकिनार कर टीम चुनी, तो टीम में शामिल चेहरों को देख किसी ने सोचा भी नही होगा की यह टीम इतना घटिया प्रदर्शन करेगी. चाहे बात क्षेत्ररक्षण की हो या गेंदबाजी की, कही से भी यह साबित नही हो सका की यही टीम एक बार टी-20 वर्ल्ड चैम्पियन रह चुकी है. इस बार की टीम में महेंद्र सिंह धोनी, गौतम गंभीर, युवराज सिंह, युसुफ़ पठान जैसे नाम शामिल थे. धोनी का कैरियर औसत जहाँ 34.71 का है, वहीं धोनी इस विश्वकप में सिर्फ 17 की औसत से 85 रन बना सके. सिक्सर और लड़कियों के दिल के किंग कहे जाने वाले युवराज सिंह ने 5 मैचों में महज़ 74 रन बनाए. इन्डियन प्रीमियर लीग में युसुफ़ पठान और मुरली विजय की शानदार शाटों से सजी शतकीय पारियों का जहाँ विपक्षी गेंदबाजों के पास कोई जवाब न था, वहीं विश्वकप में इन धुरंधरों के बल्ले से एक अर्धशतक तक न निकल पाया. न सिर्फ बल्लेबाज़, बल्कि गेंदबाजों की गेंदों धार भी आई.पी.एल. के मुकाबले कहीं कुंद दिखाई दी. पूरी भारतीय टीम में अगर सिर्फ सुरेश रैना का नाम छोड़ दिया जाए, तो कोई भी खिलाडी देशवासियों की उम्मीदों पर खरा नही उतर सका. रैना पूरे टूर्नामेंट में ''एक मैच में सर्वाधिक निजी स्कोर'' बनाने वालों की सूची में जहाँ शीर्ष पर रहे, वहीं किसी भी सूची में, चाहे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हों, या सबसे ज्यादा छक्के मारने वालों का क्रम, कहीं भी किसी भी भारतीय की परछाई तक दिखाई न दी.
तमाम पूर्व कप्तानो और क्रिकेट विशेषज्ञों ने आई. पी एल. के व्यस्त कार्यक्रमों और मैच के बाद थका कर चूर कर देने वाली पार्टीयों को इस हार का ज़िम्मेदार ठहराया. हालांकि इस बात से कप्तान धोनी ने साफ़ इनकार कर दिया. माही ने कहा कि, आई.पी एल. के व्यस्त कार्यक्रम का असर खिलाड़ियों पर नही पड़ा है और विश्वकप को इससे (आई.पी.एल.) अलग रखा जाना चाहिए. पर ये बात और है की गंभीर, युसुफ़ पठान, आशीष नेहरा के थके हुए चेहरे कुछ और ही बयान कर रहे थे.
शायद आई.पी.एल. के व्यस्त कार्यक्रम और करोड़ों रुपयों की बौछार ने खिलाड़ियों को देश के बारे में सोचने का वक़्त ही नही दिया. हालांकि कुछ लोगों ने इस हार का ठीकरा धोनी के टीम चयन जैसे गलत निर्णयों पर भी फोड़ा. टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने के फैसले पर धोनी की जमकर आलोचना हुई, पर शायद भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन का यह कोई मज़बूत वजह नही था. इस शर्मनाक हार के बाद भारतीय क्रिकेट फैंस में काफी रोष है. विश्वकप के बाद पब में हुई खिलाड़ियों और फैंस के बीच की झड़प इस बात की पुष्टी करती है. बहरहाल, बी.सी.सी.आई. ने धोनी को एशिया कप का कप्तान नियुक्त कर शायद एक आखरी मौका दिया है. अगर एशिया कप में भी टीम का प्रदर्शन अच्छा नही रहा,तो धोनी की छुट्टी तय मानी जा रही है.
जो भी हो, भारतीय टीम की विश्वकप में शर्मनाक हार के बाद शायद हर क्रिकेट प्रेमी यही कहेगा-
ab ap media karmiyo kohi dekhiye ek series kya haar gyi team india to ap log unke peeche hi pad gye..ye lekh tk likh dala..pr abhi ki taja jeet ko hi dekhiye jab humari team india ne chir pratidwandiyo ko hraate hue asia cup me pravesh kiya..ye log jaise bhi h hai to humare desh k hi khilaadi...mai ye nahi kehti ki unki galtiyon pr unhe sachet nahi krna chahiye pr fir bhi haar aur jeet ek hi sikke k do pehlu h jinhe hume aur samooche desh ko khule dil se swikaar krna chahiye...chak de india..jai hind
ReplyDeleteab ap media karmiyo kohi dekhiye ek series kya haar gyi team india to ap log unke peeche hi pad gye..ye lekh tk likh dala..pr abhi ki taja jeet ko hi dekhiye jab humari team india ne chir pratidwandiyo ko hraate hue asia cup me pravesh kiya..ye log jaise bhi h hai to humare desh k hi khilaadi...mai ye nahi kehti ki unki galtiyon pr unhe sachet nahi krna chahiye pr fir bhi haar aur jeet ek hi sikke k do pehlu h jinhe hume aur samooche desh ko khule dil se swikaar krna chahiye...chak de india..jai hind
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