Thursday, October 22, 2009

गए वो दिन...

जिंदगी रोज़ लाती रही बीते दिनों की याद,
अब न आये याद कोई बस यही है फरियाद...!!!
रोज़ रात अब किसी की याद चली आती है,
इन पलकों पे न जाने कितने आंसू वो दे जाती है...!!!
चाहत थी की मिले हमें भी चांदनी रातें,
पर अब अमावास की काली घटा छा जाती है...!!!
था ये भी हमारी ही सिफत का नतीजा,
वर्ना कईयों की तो जिंदगियां तक खत्म हो जाती है...!!!


-देवास दीक्षित

2 comments:

  1. यादें तो यादें हैं....
    कभी हँसाती और कभी रुलाती है...
    याद कर उन पलों को लिखते रहो...

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  2. yaadien...yahi ek chhej hai jiski badolat hum log koi bhi rachna likh paatein h..meethi aur kadwi yaadon ki potli hi jindgi jeena sikhati h...

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