Wednesday, October 21, 2009

सोचो ज़रा

दिन, महीने, साल, यूँ ही कटते जाते है...
पर उन ज़ख्मो के घाव सदा हरे होते जाते है...

अपनों की याद सदा पलकों पर आंसू ले आती है...
वो तस्वीरें आँखों के आगे बस नाचती जाती है...

ज़ंग तो दो दिन की मेहमान होती है..
लेकिन कई जिंदगियां ताउम्र वीरान होती हैं...

कोई हाथों से चूडियाँ उतारता है...
कोई गोद में रखे उस सर को ढूँढता है...
कोई उस रेशम की डोर को खोजता है...
तो कोई उस बाप के साए को रोता है...

उस रोदन की काली घटा घर पर छा जाती है...
जहा देखो वही सूरत नज़र आती है...

आखिर ऐसे वीरों की शहादत क्यों होती है जब...
यहाँ तो यह शहादत एकदम व्यर्थ होती है...

यहाँ तो बस गद्दारों का जमघट लगा है...
इस देश में बताओ यार कौन किसका सगा है...

यहाँ तो जिंदगी भी मौत जैसी लगती है...
हर जगह बस नोटों की सेज सजा करती है...

देश के पौधे को लहू से सरफरोशों ने सींचा है...
आज़ादी का ये सफ़र न जाने कैसे-कैसे खींचा है...

सरफरोशी के ख्वाब अपनी आँखों में सजा लो...
इस प्यारे चमन को उजड़ने से बचा लो...

फिर होगा मस्ती का माहौल, खुशहाली छाएगी...
सोने की चिड़िया फिर उडेगी, नई सुबह लाएगी...


-देवास दीक्षित

7 comments:

  1. बहुत सही कहा है दोस्त |
    पंक्तियाँ सार्थक हो रही हैं ...
    अच्छा लिख रहे हो ...
    बधाई एवं शुभकामनाएं |

    ReplyDelete
  2. आज का नोजवान आपलोगों की तरह जाग जाये तो ये देश सोने की चिडिया क्या सोने का हाथी बन जायेगा... शुभकामनाये....

    ReplyDelete
  3. mast likhte ho yar keep it up ..............

    ReplyDelete
  4. batin Se Zahin par ane ki ummid hai aapse

    ReplyDelete
  5. ye un tamaam logo k liye h jinhone is sansaar ko chote chote tukdo me baat diya h.chahe do alag alag vishva ho ya ek hi vishva me alag alag raajya..koi unhe samjhaae insaan k rago me daudta khun to ek hi h..fir sarhado k peeche maar kaat kyu..kash har mulk k naujwaan ye samajh paaye...par ye kaash kaash hi reh jaata h

    ReplyDelete
  6. ye un tamaam logo k liye h jinhone is sansaar ko chote chote tukdo me baat diya h.chahe do alag alag vishva ho ya ek hi vishva me alag alag raajya..koi unhe samjhaae insaan k rago me daudta khun to ek hi h..fir sarhado k peeche maar kaat kyu..kash har mulk k naujwaan ye samajh paaye...par ye kaash kaash hi reh jaata h

    ReplyDelete