Friday, October 23, 2009

उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा...
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा
डगर थी कठिन, काटों से भरी...
उसपर मैं हिम्मत के साथ चलता रहा

गुरबत-ए-गगन पाने की काविश में,
बस आगे ही बढ़ने की ख्वाहिश में,
सिलसिला अनोखा मुसल्सरी का चलता रहा...
उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा,
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा

हयात-ए-अर्श पर जाना चाहा,
हर ख़ुशी को मैंने पाना चाहा,
तारीकों, हवासात को छोड़ पीछे, मैं आगे चलता रहा...
उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा,
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा

- देवास दीक्षित

2 comments:

  1. बहुत खूब जनाब...
    आपके दिल में ख्वाब यूँ ही पलते रहे और हम ऐसे ही आपकी रचनाए पढ़ते रहे...

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  2. डगर थी कठिन, काटों से भरी...
    उसपर मैं हिम्मत के साथ चलता रहा

    प्रेरित करती पंक्तियाँ... लिखते रहें

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