Friday, October 23, 2009

उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा...
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा
डगर थी कठिन, काटों से भरी...
उसपर मैं हिम्मत के साथ चलता रहा

गुरबत-ए-गगन पाने की काविश में,
बस आगे ही बढ़ने की ख्वाहिश में,
सिलसिला अनोखा मुसल्सरी का चलता रहा...
उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा,
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा

हयात-ए-अर्श पर जाना चाहा,
हर ख़ुशी को मैंने पाना चाहा,
तारीकों, हवासात को छोड़ पीछे, मैं आगे चलता रहा...
उम्मीद का दिया इस दिल में जलता रहा,
एक ख्वाब अनोखा इस दिल में पलता रहा

- देवास दीक्षित

Thursday, October 22, 2009

गए वो दिन...

जिंदगी रोज़ लाती रही बीते दिनों की याद,
अब न आये याद कोई बस यही है फरियाद...!!!
रोज़ रात अब किसी की याद चली आती है,
इन पलकों पे न जाने कितने आंसू वो दे जाती है...!!!
चाहत थी की मिले हमें भी चांदनी रातें,
पर अब अमावास की काली घटा छा जाती है...!!!
था ये भी हमारी ही सिफत का नतीजा,
वर्ना कईयों की तो जिंदगियां तक खत्म हो जाती है...!!!


-देवास दीक्षित

मैं बर्बाद-ऐ-गुलिस्तां का सूखा झाड़ हूँ...

मैं बर्बाद-ऐ-गुलिस्तां का सूखा झाड़ हूँ...
कल तक तो मई आबाद था, पर अब बर्बाद हूँ....

तोता-मैना मिला करते थे मेरी डाल पर...
खिल जाता था मेरा चेहरा मोर की आवाज पर...

बारिश की बूँदें मुझे छेड़-छेड़ कर जाती थीं...
खूबसूरत कलियाँ मुझ पर भी खिल आती थीं...

लेकिन फिर चला आया खिज़ा का मौसम...
हो गईं इक दिन आँखें मेरी भी नम...

चारों तरफ नज़र आ रहा था पतझड़...
लग रहा था आने वाले दिनों से मुझे डर...

मेरे अरमान बिखर गए पत्तों की तरह...
पंछी भी उड़ गए बेगानों की तरह...

पहले मै लेह-लद्दाख था, अब तो बग़दाद हूँ...
मै बर्बाद-ऐ-गुलिस्तां का सूखा झाड़ हूँ...

एक बार फिर एक दिन सावन का वो कल आएगा...
उस पल के लिए मैं बेकरार हूँ...
पहले मैं आबाद था, अब बर्बाद हूँ...
मैं बर्बाद-ऐ-गुलिस्तां का सूखा झाड़ हूँ...



Wednesday, October 21, 2009

सोचो ज़रा

दिन, महीने, साल, यूँ ही कटते जाते है...
पर उन ज़ख्मो के घाव सदा हरे होते जाते है...

अपनों की याद सदा पलकों पर आंसू ले आती है...
वो तस्वीरें आँखों के आगे बस नाचती जाती है...

ज़ंग तो दो दिन की मेहमान होती है..
लेकिन कई जिंदगियां ताउम्र वीरान होती हैं...

कोई हाथों से चूडियाँ उतारता है...
कोई गोद में रखे उस सर को ढूँढता है...
कोई उस रेशम की डोर को खोजता है...
तो कोई उस बाप के साए को रोता है...

उस रोदन की काली घटा घर पर छा जाती है...
जहा देखो वही सूरत नज़र आती है...

आखिर ऐसे वीरों की शहादत क्यों होती है जब...
यहाँ तो यह शहादत एकदम व्यर्थ होती है...

यहाँ तो बस गद्दारों का जमघट लगा है...
इस देश में बताओ यार कौन किसका सगा है...

यहाँ तो जिंदगी भी मौत जैसी लगती है...
हर जगह बस नोटों की सेज सजा करती है...

देश के पौधे को लहू से सरफरोशों ने सींचा है...
आज़ादी का ये सफ़र न जाने कैसे-कैसे खींचा है...

सरफरोशी के ख्वाब अपनी आँखों में सजा लो...
इस प्यारे चमन को उजड़ने से बचा लो...

फिर होगा मस्ती का माहौल, खुशहाली छाएगी...
सोने की चिड़िया फिर उडेगी, नई सुबह लाएगी...


-देवास दीक्षित

Tuesday, October 20, 2009

वो सवाल...

कई लोगों ने आकर कई बार हमसे पूछा...

कि कितनी चाहत है तुम्हारी उनके लिए?

लोग कहते है कि वो अपने हमदम से बहुत मीठा प्यार करते है...

हम तो बस इतना मीठा करते है कि मधुमेह न हो जाए...

वर्ना मधुमेह कई बीमारियाँ पैदा करता है...



लोग कहते है कि वो उनके लिए मर-मिट सकते है...

हम यार बस मर नहीं सकते क्योकि हम जिंदगी का ये सफ़र उनके साथ तय करना चाहते है...



लोग कहते है कि वो सिर्फ उनके है...

हम कहते है वो किसी के भी हो, बस जहाँ हो खुश हो, मस्त हो...



आखिर में पूछा गया कि वो तो है नहीं, फिर कब तक करोगे उनका इंतज़ार...???

मैंने कहा...

हर पल, हर वक़्त, मरते दम तक, और

उसके बाद भी...!!!





- देवास दीक्षित