Wednesday, September 9, 2009

मुझे लिखने का शौक नहीं...

मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उन यादों को इस दिल में ताजा रख सकूं...


मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उस चेहरे की मासूमियत को, इन आँखों में याद रख सकूं...


मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उस पल की खट्टी-मीठी यादों को ध्यान कर अश्क बहा सकूं...


मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उस आफ़ताब को देखकर कह सकूं, कभी तू मेरे पास था...


मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उन जुल्फों के उस बदल की बारिश में भीग कर बीमार पड़ सकूं...


मुझे लिखने का शौक नहीं,

लिखता हूँ, ताकि उन शराबी आँखों के नशे में डूब सकूं...


मैं बस इसलिए लिखता हूँ,

क्योकि मैं उन्हें भुलाना नही चाहता...

बस इसलिए लिखता हूँ,

ताकि वो हमेशा मेरी कल्पनाओं में उड़ सकें...


मैं बस इसलिए लिखता हूँ,

ताकि जब चाहूँ, खुद को पढ़ सकूँ...


मैं बस इसलिए लिखता हूँ,

ताकि इस दिल की गर्माहट को उस चाँद की शीतलता से ठंडा कर सकूं...


इसलिए कोशिश करता हूँ की,

बस लिखता रहूँ...

लिखता रहूँ...

लिखता रहूँ...

- देवास दीक्षित

3 comments:

  1. kyo words ke maa behan 1 ker reha hai..jaberdesti likhker

    ReplyDelete
  2. bas isi tarh se likhte raho taaki tumhara na likhne ka sauk pura hote rahe...

    ReplyDelete
  3. aapki aadat bhi ajib hai ..likhna hi aapka nasib hai ..bahut pasand aayi aapki kavita..ye andheron me raushan ek naya deep hai..

    ReplyDelete