अब थम गया हूँ मैं,
पत्रकार बन गया हूँ मैं...
चाहत थी देश, विदेश बनाऊं
सदविचारों से माहौल सजाऊं
पर शायद अब भटक गया हूँ मैं,
क्या पत्रकार बन गया हूँ मैं ???
चाहत थी हों निर्भय सब,
न हो डर का साया अब,
शायद खुद ही सहम गया हूँ मैं,
क्या पत्रकार बन गया हूँ मैं ???
माहौल सजा है अदभुत कैसा,
शोहरत ताक़त चाहिए पैसा
अब तो कमा रहा हूँ मैं,
क्या पत्रकार बन रहा हूँ मैं ???
हंसी के फव्वारे दिखाता हूँ,
रात में जुर्म से मिलाता हूँ,
मासूमों को पैसा दिलाता हूँ,
रावण के दर्शन कराता हूँ,
क्या इतना बदल गया हूँ मैं ???
पर यह सब करके इस अंधे बाज़ार में,
शायद अब जम गया हूँ मैं...
हां भाई हां...
अब तो पत्रकार बन गया हूँ मैं...!!!
- देवास दीक्षित
हम आपकी बात से पूरा इत्तेफाक रखते हैं देवास बाबू | बेहतरीन पंक्तियाँ | बधाई |
ReplyDeleteसही जा रहें है | चलते रहिये | सहयोग रहेगा |
बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहो...
मंजिल जरुर मिलेगी....
पर धयान केवल लक्ष्य की ओर होना चाहिए...
bas kabhi bhi galat chhej ko swikaar mat krna..sachhai ka saath dena hi apka lakshya hona chahiye/...shubhkaamnaao sahit patrakaar ji..aapki sabhi kaamnaae puri ho
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