Sunday, May 29, 2011

ज़िन्दगी फिर से लाती है,
बीते दिनों की याद...

अब न आये याद कोई,
बस यही है फ़रियाद...

ज्यों-ज्यों यादों की चादर से,
सिलवटें हटती जाती हैं,
इन पलकों पर न जाने कितने
आंसू वो दे जाती हैं...
कुछ चाहत उनकी और कुछ सिफ़त हमारी थी...
कईयों की वरना जिंदगियां तक खत्म हो जाती हैं...


-देवास दीक्षित 'कृत'

Sunday, October 24, 2010

जीत को तरस गए कंगारू




शायद किसी ने सच ही कहा है- 'समय बड़ा बलवान होता है'. समय कभी भी एक सा नही रहता. यह बात वर्तमान परिपेक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में एकदम सत्य साबित हो रही है. एक वक़्त था जब ग्लेन मैकग्रा, शेन वार्न और स्टीव वॉ सरीखे धुरंधरों वाली ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट टीम की तूती अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बोलती थी. इस टीम के साथ मैच होने पर विपक्षी टीम की हार लगभग तय मानी जाती थी. वक़्त बदला, टीमें बदली और शायद इतिहास के पन्नो में कभी 'अजेय' मानी जाने वाली ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम अब वैसी नही रही. पिछले कुछ वर्षों में ऑस्ट्रलियाई क्रिकेट टीम का वर्चस्व खत्म हो चुका है.
पिछले माह संपन्न हुई टेस्ट व वनडे सीरीज़ के परिणाम तो कुछ इसी ओर इशारा करते हैं. टेस्ट व वनडे, दोनों ही सीरीजों में ऑस्ट्रेलिया को हार का मुँह देखना पड़ा. वहीँ तेज़ी से निखर रही सीनियर खिलाड़ियों के अनुभव व युवाओं के जोश के मेलजोल वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने एक बार फिर दिखा दिया कि क्यों उसे विश्व की सबसे मज़बूत टीमों में से एक कहा जाता है.
तो कैसा रहा ऑस्ट्रेलिया टीम का भारत दौरा, आइये देखते हैं-

पहला टेस्ट: 1 से 5 अक्टूबर, पी.सी.ए. स्टेडियम, मोहाली. भारतीय पिचों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाने वाली मोहाली की तेज़ पिच पर ऑस्ट्रेलिया ने टॉस जीत कर पहले बल्लेबाजी करते हुए ओपनर शेन वाटसन के शानदार 128 रनों की बदौलत 428 रनों का स्कोर खड़ा किया. ज़हीर खान ने धारदार गेंदबाजी करते हुए 93 रन देकर 5 व हरभजन सिंह ने 114 रन देकर 3 विकेट चटकाए. ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी के जवाब में मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के 98 व सुरश रैना के 86 रनों की बदौलत भारत ने 405 रन बनाए. ऑस्ट्रेलिया के लिए पहली पारी में मिशेल जॉनसन ने मात्र 64 रन देकर 5 विकेट लिए.
पहली पारी में 23 रन की मामूली बढ़त ले ऑस्ट्रलियाई टीम के ओपनर शेन वाटसन व साइमन कैटिच ने टीम को ठोस शुरुआत दी. लेकिन बाकी की ऑस्ट्रेलियाई टीम ताश के पत्तों की तरह 192 रनों पर बिखर गयी. 215 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम की शुरुआत बेहद खराब रही. जिस समय मात्र 122 रनों के स्कोर पर सचिन, गंभीर, सहवाग, द्रविड़ और धोनी जैसे दिग्गज पवैलियन लौट चुके थे, तब हमेशा से कंगारुओं की आँख का काँटा रहे वी.वी.एस. लक्ष्मण ने मोर्चा सँभालते हुए 73 रनों की नाबाद पारी खेली. 'वैरी वैरी स्पेशल लक्ष्मण' का ईशांत शर्मा (31 रन) ने बखूबी साथ निभाया. बेहद रोमांचक रहे इस मुकाबले में भारत ने 1 विकेट से जीत दर्ज़ की. मैच में आठ विकेट लेने वाले ज़हीर खान को 'मैन ऑफ़ द मैच' चुना गया.

दूसरा टेस्ट: 9 से 13 अक्टूबर, चिन्नास्वामी स्टेडियम, बेंगलुरु.
पहले मैच की तरह इस बार भी टॉस जीत पहले बल्लेबाजी करने उतरी कंगारू टीम ने 478 रन बनाए. 17 चौकों की मदद से ऑस्ट्रेलियाई टीम की ओर से मार्कस नॉर्थ ने शानदार 128 रन बनाए. कंगारुओं की पहली पारी के जवाब में भारतीय टीम 17 रनों की मामूली बढ़त ले 495 रनों पर सिमट गयी. भारत की ओर से इस पारी में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने दुहरा शतक जड़ते हुए शानदार 214 रन बनाए. सचिन के साथ ही युवा ओपनर मुरली विजय ने भी बढ़िया बल्लेबाजी करते हुए 139 रन बनाए. पहले टेस्ट में हार के बाद सीरीज़ में पिछड़ चुकी ऑस्ट्रेलियाई टीम दूसरी पारी में सिर्फ 223 रनों पर सिमट गयी. इस पारी में केवल कप्तान रिकी पॉन्टिंग ने 72 रनों का उल्लेखनीय योगदान दिया. कप्तान पॉन्टिंग के अलावा कोई भी ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ ज्यादा देर क्रीज़ पर टिक न पाया. 207 रनों का पीछा करने उतरी भारतीय टीम ने ये लक्ष्य मात्र 3 विकेट खोकर हासिल कर लिया. भारत की ओर से अपना पहला टेस्ट खेल रहे चेतेश्वर पुजारा ने 72 रन बनाकर सभी को प्रभावित किया. दूसरी पारी में भी बढिया बल्लेबाजी करते हुए सचिन ने अपने टेस्ट करियर का 58वां अर्धशतक ठोंका और 'मैन ऑफ़ द मैच' का खिताब अपने नाम किया.
अंततः भारतीय टीम ने ऑस्ट्रेलिया हो 2 -0 से सीरीज़ हरा 'बार्डर-गावस्कर' ट्राफी पर कब्जा किया. पूरी सीरीज़ में ज़बरदस्त प्रदर्शन करने वाले सचिन तेंदुलकर को 'मैन ऑफ़ द सीरीज़' घोषित किया गया. इसके साथ ही एक लम्बे अरसे बाद सचिन आई.सी.सी. के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों की सूची में पहले पायदान पर पहुँच गए. टेस्ट टीमों की रैंकिंग में भी भारत शीर्ष पर बना हुआ है.

टेस्ट सीरीज़ में मिली हार का बदला वनडे में चुकाने का कंगारुओं का सपना धरा ही रह गया. तीन मैचों की वनडे श्रंखला के पहले और आखिरी मैच बारिश की भेंट चढ़ गए जिनका कोई नतीजा न निकल सका. वहीँ दूसरी ओर विशाखापत्तनम में खेले गए दूसरे वनडे में भारत ने पांच विकेट से जीत दर्ज़ की. इस मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए कप्तान माइकल क्लार्क के 111 रनों की मदद से ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 289 रन बनाए. ऑस्ट्रेलिया की ओर से वाईट और हसी ने क्रमश 89 व 69 रनों का योगदान दिया. 290 के चुनौतीपूर्ण लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया ने यह लक्ष्य सिर्फ 48 .5 ओवरों में पांच विकेट शेष रहते हासिल कर लिया. रणजी में दिल्ली और आई.पी.एल.में बंगलुरु की ओर से खेलने वाले विराट कोहली ने भारत के लिए 118 रन बनाए. युवराज सिंह(58 रन, पांच चौके) और सुरेश रैना(71 रन, नौ चौके) ने भी भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई. विराट कोहली को अपनी शतकीय पारी के 'मैन ऑफ़ द मैच' के ख़िताब से नवाज़ा गया.
ऑस्ट्रेलियाई टीम को भारत का यह दौरा आसानी से भूलेगा नही. पहले भारतीय टीम का शानदार प्रदर्शन और बाद में बारिश ने कंगारुओं को जीत से वंचित रखा. अगर बात भारतीय टीम की करी जाए तो 2011 विश्वकप की तैय्यारियों का भारतीय टीम ने एक उत्कृष्ट नमूना पेश किया. लम्बे समय से खराब फार्म से जूझ रहे युवराज सिंह जहाँ रंग में लौटते दिखे, वहीँ पिछले कई अरसे से लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे सुरेश रैना सभी की आँखों के नूर बन चुके हैं. हम कह सकते हैं 2011 विश्वकप के मद्देनजर, एक बेहतरीन टीम तैयार हो रही है.

- देवास दीक्षित कृत

Friday, September 10, 2010

नाटक- बेगम जैनाबादी


शरद पगारे द्वारा लिखित उपन्यास 'बेग़म जैनाबादी' पर आधारित एक नाटक का मंचन दिल्ली के श्री राम सेंटर ऑफ़ आर्ट्स में 13 व 14 नवम्बर 2010 को होगा. यह नाटक दिल्ली के क्षितिज थियेटर ग्रुप द्वारा अभिमंचित किया जाएगा. नाटक, मुग़लिया सल्तनत के सबसे विवादास्पद बादशाह औरंगजेब आलमगीर की जिंदगी पर आधारित है. निर्देशिका भारती शर्मा का कहना है की यह नाटक दर्शकों को औरंगजेब की जिंदगी के उन पहलुओं से रूबरू करवाएगा, जिसके बारे में न तो कभी कुछ कहा गया, और न हीं कुछ लिखा गया. यह नाटक लोगों को एक ऐसे औरंगजेब से परिचित कराएगा जिससे ज़्यादातर लोग वाकिफ नहीं हैं. नाटक शाम 7 बजे से शुरू होगा. उम्मीद है आपका साथ मिलेगा.

Saturday, August 14, 2010

सरफ़रोशी की तमन्ना

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वक़्त आने पर बता देंगे तुझे, ए आसमान,
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है
खेँच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उमीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

है लिए हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर,
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर.
ख़ून से खेलेंगे होली अगर वतन मुश्क़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हाथ, जिन में है जूनून, कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से.
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

हम तो घर से ही थे निकले बाँधकर सर पर कफ़न,
जाँ हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये कदम.
ज़िंदगी तो अपनी मॆहमाँ मौत की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

यूँ खड़ा मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है?
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज.
दूर रह पाए जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमे न हो ख़ून-ए-जुनून
क्या लड़े तूफ़ान से जो कश्ती-ए-साहिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में
है

- पं0 राम प्रसाद बिस्मिल

Friday, July 30, 2010

जंग अभी जारी है....

न खून, न घाव, न तलवार, न गोली...
फिर भी जंग जारी है।
इस लड़ाई का मैं मारा,
लड़ रहा हूँ, परस्पर...
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।


क्या जाने क्या कर पाऊंगा,
जाने कौन या यूहीं मिट जाऊँगा.
जिंदगी के दरिया का मैं शानावर,
पायाब की तलाश में...
ज़जीरों से गुज़रता रहा हूँ अक्सर
अपने आप से लड़ने की,
ताक़त अभी बाकी है...
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।


मैं क्या हूँ, मैं कौन हूँ,
अपने अक्स से अंजान,
शायद खुद को 'देवास' की चाहत हो,
ढूंढता हूँ वह जो मेरी राहत हो...
नया जोश भरने के खातिर,
खुद को भट्टी में झोंकने की,
अपनी भी तैयारी है,
जंग अभी जारी है,
बहुत मारामारी है।


पर ठान रखा है कुछ हमने भी,
हैं, और रहेंगे सपने अपने भी।
मुखाल्फ्तों का खौफ नही,
बेकार सिफत का मुझे भी शौक नहीं.
उस उफक को पाने की,
ग़ुरबत अभी बाकी है...
जंग अब भी जारी है,
बहुत मारामारी है।


होंगीं अपने लिए भी बज्में,
यूहीं लिखता रहूँगा नज्में...
सर्फ़ होती जिंदगी की,
मंजिल अभी बाकी है.
बस थोड़ी रजिश की ही दरकारी है,
जंग अब तलक जारी है,
वाकई बहुत मारामारी है...


-देवास दीक्षित 'कृत'

Sunday, June 27, 2010

विजयी भव:

आपने वह डायलौग तो सुना ही होगा- ''हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं''. शाहरुख़ खान कि सुपरहिट फिल्म बाज़ीगर कि यह लाइन भारतीय क्रिकेट टीम पर पूरी तरह फिट बैठती है. तीसरे टी-20 विश्वकप में मुँह की खाने के बाद, भारतीय क्रिकेट टीम ने एक अरसे बाद अपने प्रशंसको को खुश कर दिया है. दरअसल भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों के चेहरे पर यह मुस्कान एशिया कप जीतने के बाद आई है.
हाल ही में एशिया कप जीतकर आई इस टीम को देखकर शायद ही कोई विश्वास कर सके कि यह वही टीम है, जिसे टी-20 विश्वकप के सुपर-8 चरण में ही बाहर होना पड़ा था. विश्वकप में ख़राब प्रदर्शन की गाज़ खिलाडियों पर गिरी और नाराज़ चयनकर्ताओं ने ज़िंबाबवे दौरे के लिए युवा टीम को मौका दिया. सुरेश रैना की अगुवाई वाली युवा टीम ने यहाँ भी निराश किया. ज़िंबाबवे जैसी टीम से अपने दोनों मैच हारने के बाद टीम बिना फाइनल खेले स्वदेश लौट आई. सीनियर और युवा खिलाड़ियों के ख़राब प्रदर्शन को लेकर चयनकर्ताओं के माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती थीं. सामने एशिया कप था, जहाँ भारतीय टीम को श्रीलंका, बांग्लादेश और चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान से भिड़ना था. इस बार चयनकर्ताओं ने युवाओं के जोश और सीनियर खिलाड़ियों के होश का काकटेल बनाया. महेंद्र सिंह धोनी को खुद को अच्छा कप्तान साबित करने का आखरी मौका दिया गया. इस बार भारतीय टीम ने किसी को निराश नही किया और चैम्पियनों की तरह खेलते हुए एशिया कप जीत लिया.
भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए मैच हमेशा से खेल प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं. और शायद पूरे एशिया कप में से क्रिकेट प्रेमियों को सबसे ज्यादा इंतजार, इस मैच का ही था. हर बार की तरह इस बार भी इस मैच में वो सब कुछ था जो इन चिर-प्रतिद्वंदियों के मैच में देखने को मिलता है. मैच के बीच में हमेशा की तरह खिलाड़ियों के बीच झड़प हुई जिसमे अम्पायरों ने बीच-बचाव किया. बहरहाल, कड़ी टक्कर, तनाव और बेहद रोमांच से भरे इस मैच को भारत ने 3 विकेट से जीत लिया. इस जीत के साथ ही भारतीय क्रिकेट प्रेमियों में हर्ष की लहर दौड़ गयी. दिल्ली में तो जगह-जगह पटाखे छुटाए गए. दिल्ली के एक क्रिकेट प्रशंसक अमित ने तो यहाँ तक कह डाला कि अब चाहे टीम एशिया कप जीते या हारे, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, भारत पाकिस्तान से जीत गया, यह सबसे बड़ी बात है.
पाकिस्तान के अलावा भारतीय टीम ने बांग्लादेश को भी 6 विकेट से करारी मात दी. हालाँकि अपने लीग मैच में, भारतीय टीम को श्रीलंका के हाथों 7 विकेट से हार झेलनी पड़ी, पर फाइनल मैच में भारतीय टीम ने अपनी इस हार का बदला ले लिया. फाइनल मैच में भारत ने श्रीलंका को 81 रन से हराकर ख़िताब पर कब्जा किया. जहाँ फाइनल मैच में 'मैन ऑफ द मैच' दिनेश कार्तिक को दिया गया, वहीं पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी एशिया कप में 88.3 की औसत से 265 रन बनाकर मैन ऑफ द सीरीज़ बने.
इस शानदार और 'कमबैक' जीत से खुश भारतीय चयनकर्ताओं ने 18 जुलाई से श्रीलंका में शुरू होने वाली 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ के लिए भारतीय टीम की घोषणा कर दी है. सचिन तेंदुलकर. राहुल द्रविड़ और वी.वी.एस. लक्ष्मण की 'त्रिमूर्ति' को टीम में शामिल किया है. इनके अलावा सहवाग, धोनी, गंभीर और रैना की मौजूदगी से टीम का बल्लेबाजी क्रम ख़ासा मज़बूत नज़र आ रहा है. ज़िम्बाब्वे और एशिया कप से अपने खराब प्रदर्शन के चलते टीम से बाहर किये गए युवराज सिंह को टीम में शामिल किया गया है. युवराज सिंह की प्रतिभा पर शायद ही किसी को शक हो, पर युवी को यह खुद ध्यान रखना चाहिए की लम्बे अरसे से लगातार युवा खिलाडी टेस्ट टीम के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं. पिछले कई सीज़नों से रणजी ट्राफी में रनों का पहाड़ खड़ा करने वाले चेतेश्वर पुजारा ने हाल ही में इण्डिया 'ए' की तरफ से खेलते हुए इंग्लैंड में दो सेंचुरी लगाई हैं, जिनमे से एक डबल सेंचुरी है. ज़ाहिर है, चयनकर्ता पुजारा के इस प्रदर्शन को ज्यादा देर तक नज़र अंदाज़ नही कर पाएंगे. खुद को साबित करने का, युवराज का यह आखरी मौका साबित हो सकता है. टीम चयन में दूसरे विकेट-कीपर के रूप में व्रिधिमान साहा का चयन समझ से परे है. एशिया कप में 53 की औसत से 106 रन बनाने वाले दिनेश कार्तिक साहा से ज्यादा अनुभवी, विकेट-कीपर हैं. कार्तिक एक अच्छे ओपनर भी हैं, ज़ाहिर है साहा के स्थान पर कार्तिक चयनकर्ताओं के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते थे. गेंदबाजी विभाग में भी ज़हीर और हरभजन को छोड़ कोई भी खास अनुभवी गेंदबाज़ नहीं है. खैर, देखते हैं, इस बार ऊँट किस करवट बैठता है. टेस्ट टीम इस प्रकार है-
महेंद्र सिंह धोनी(कप्तान), वीरेंद्र सहवाग, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वी.वी.एस. लक्ष्मण, गौतम गंभीर, मुरली विजय, युवराज सिंह, सुरेश रैना, हरभजन सिंह, ज़हीर खान, इशांत शर्मा, एस. श्रीसंत, अमित मिश्रा, प्रज्ञान ओझा और व्रिधिमान साहा.

-देवास दीक्षित
कृत

Wednesday, June 2, 2010

भेजा था बादाम समझके, निकले मूंगफली...!!!

अक्सर कहा जाता हैं कि लड़ो तो खिलाडी जैसे लड़ो. पर भारत देश में, जहाँ खिलाडी सिर्फ क्रिकेटर्स को समझा जाता है, ऐसा कहना सरासर बेईमानी होगी. ऐसे देश में जहाँ क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटर्स को भगवान कहा जाता है, वहाँ इस खेल का बेहद घिनौना रूप, हमें देखने को मिला.
जिन खिलाड़ियों को हमने देवता समझ,लाखों अरमानों और उम्मीदों से टी-20 विश्वकप में खेलने भेजा था, उन्होंने उन सब आशाओं का गला घोंट दिया. कागजों पर खूंखार शेर दिखने वाले भारतीय खिलाडी टीम को सेमीफाइनल में भी नही पहुंचा सके और सुपर-8 चरण में ही बोरिया-बिस्तर समेत वापस स्वदेश लौट आये. तीसरे टी-20 विश्वकप के लिए जब चयनकर्ताओं ने रोबिन उत्थपा, प्रज्ञान ओझा सरीखे युवाओं को दरकिनार कर टीम चुनी, तो टीम में शामिल चेहरों को देख किसी ने सोचा भी नही होगा की यह टीम इतना घटिया प्रदर्शन करेगी. चाहे बात क्षेत्ररक्षण की हो या गेंदबाजी की, कही से भी यह साबित नही हो सका की यही टीम एक बार टी-20 वर्ल्ड चैम्पियन रह चुकी है. इस बार की टीम में महेंद्र सिंह धोनी, गौतम गंभीर, युवराज सिंह, युसुफ़ पठान जैसे नाम शामिल थे. धोनी का कैरियर औसत जहाँ 34.71 का है, वहीं धोनी इस विश्वकप में सिर्फ 17 की औसत से 85 रन बना सके. सिक्सर और लड़कियों के दिल के किंग कहे जाने वाले युवराज सिंह ने 5 मैचों में महज़ 74 रन बनाए. इन्डियन प्रीमियर लीग में युसुफ़ पठान और मुरली विजय की शानदार शाटों से सजी शतकीय पारियों का जहाँ विपक्षी गेंदबाजों के पास कोई जवाब न था, वहीं विश्वकप में इन धुरंधरों के बल्ले से एक अर्धशतक तक न निकल पाया. न सिर्फ बल्लेबाज़, बल्कि गेंदबाजों की गेंदों धार भी आई.पी.एल. के मुकाबले कहीं कुंद दिखाई दी. पूरी भारतीय टीम में अगर सिर्फ सुरेश रैना का नाम छोड़ दिया जाए, तो कोई भी खिलाडी देशवासियों की उम्मीदों पर खरा नही उतर सका. रैना पूरे टूर्नामेंट में ''एक मैच में सर्वाधिक निजी स्कोर'' बनाने वालों की सूची में जहाँ शीर्ष पर रहे, वहीं किसी भी सूची में, चाहे सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हों, या सबसे ज्यादा छक्के मारने वालों का क्रम, कहीं भी किसी भी भारतीय की परछाई तक दिखाई न दी.
तमाम पूर्व कप्तानो और क्रिकेट विशेषज्ञों ने आई. पी एल. के व्यस्त कार्यक्रमों और मैच के बाद थका कर चूर कर देने वाली पार्टीयों को इस हार का ज़िम्मेदार ठहराया. हालांकि इस बात से कप्तान धोनी ने साफ़ इनकार कर दिया. माही ने कहा कि, आई.पी एल. के व्यस्त कार्यक्रम का असर खिलाड़ियों पर नही पड़ा है और विश्वकप को इससे (आई.पी.एल.) अलग रखा जाना चाहिए. पर ये बात और है की गंभीर, युसुफ़ पठान, आशीष नेहरा के थके हुए चेहरे कुछ और ही बयान कर रहे थे.
शायद आई.पी.एल. के व्यस्त कार्यक्रम और करोड़ों रुपयों की बौछार ने खिलाड़ियों को देश के बारे में सोचने का वक़्त ही नही दिया. हालांकि कुछ लोगों ने इस हार का ठीकरा धोनी के टीम चयन जैसे गलत निर्णयों पर भी फोड़ा. टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने के फैसले पर धोनी की जमकर आलोचना हुई, पर शायद भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन का यह कोई मज़बूत वजह नही था. इस शर्मनाक हार के बाद भारतीय क्रिकेट फैंस में काफी रोष है. विश्वकप के बाद पब में हुई खिलाड़ियों और फैंस के बीच की झड़प इस बात की पुष्टी करती है. बहरहाल, बी.सी.सी.आई. ने धोनी को एशिया कप का कप्तान नियुक्त कर शायद एक आखरी मौका दिया है. अगर एशिया कप में भी टीम का प्रदर्शन अच्छा नही रहा,तो धोनी की छुट्टी तय मानी जा रही है.
जो भी हो, भारतीय टीम की विश्वकप में शर्मनाक हार के बाद शायद हर क्रिकेट प्रेमी यही कहेगा-
"भेजा था बादाम समझके, निकले मूंगफली "

- देवास दीक्षित कृत