बीते दिनों की याद...
अब न आये याद कोई,
बस यही है फ़रियाद...
ज्यों-ज्यों यादों की चादर से,
सिलवटें हटती जाती हैं,
इन पलकों पर न जाने कितने
आंसू वो दे जाती हैं...
कुछ चाहत उनकी और कुछ सिफ़त हमारी थी...
कईयों की वरना जिंदगियां तक खत्म हो जाती हैं...
-देवास दीक्षित 'कृत'