Wednesday, February 10, 2010

वह रो क्यों रहा था...???


जनवरी माह की ठण्ड थी. सुबह १० बजे का समय रहा होगा. नहाने के बाद मैं, बालकनी में खड़ा सर्द हवाओं के बीच गुनगुनाती धूप के मज़े ले रहा था. अचानक मेरे कानो में, बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनाई दी. देखा तो सामने से साइकिल पर एक गुब्बारे वाला चला आ रहा था. गुब्बारों के अलावा उसके पास और कई चीज़ें थी, जो छोटे बच्चों को उसकी ओर आकर्षित करती थी. मोहल्लों में, अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए गुब्बारे वाला बांसुरी पर फ़िल्मी गानों की धुनें बजाता रहता.
मोहल्ले के कई बच्चों ने अबतक उसे घेर लिया था. बच्चों की उम्र ३-४ साल की रही होगी. कोई गुब्बारे वाले से डमरू खरीद रहा था, तो कोई बन्दूक ले कर खुश हो रहा था. गुब्बारे वाले से अपनी मनपसन्द चीज़ें खरीद, बच्चे अपनी दुनिया में दुबारा खो गए. गुब्बारे वाला भी वहीं खड़ा होकर सुस्ताने लगा. यह सब मैं अपनी बालकनी से देख रहा था. लगभग पांच मिनट बाद एक छोटा बच्चा रोता हुआ गुब्बारे वाले के पास आया. उस लड़के ने नीले रंग का स्वेटर पहन रखा था. उसके गोरे मोटे गालों से बहते आंसू, मोती से जान पड़ते थे. सुनहरे बालों वाला यह बच्चा किसी ठीक घर का ही लगता था. उसके रोने की आवाज़ बच्चों के खेल में खो रही थी. मुझे किसी ने बताया की दो महीने पहले लड़के के पिता का देहांत हो गया था. वह ही परिवार का भरण-पोषण करते थे. उनके बाद परिवार की हालत बेहद दयनीय हो गई थी. बारह साल की एक लड़की थी, जो किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ती थी. साल के बीच में उसे भी किसी सस्ते स्कूल में नही डाला जा सकता था. उस लड़के की माँ घर में कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर और कुछ सिलाई करके लड़की की स्कूल फीस जुटाती थी. मात्र इसी आमदनी से घर का खर्चा भी चलता था.
उस लड़के को गुब्बारे वाले से चश्मा खरीदना था. शायद चश्मा पांच रूपए का था. उस लड़के ने गुब्बारे वाले से चश्मा माँगा. समाज के नियम-कायदों से अनजान लड़का बेतहाशा रोता जा रहा था. गुब्बारे वाले को देख क्र भी निम्न भारतीय वर्ग के दर्शन होते थे. शायद गरीबी के सांप ने उसे भी डस रखा था. वह भी अमेरिका से आई खैरात बांटने तो निकला नहीं था. अचानक पीछे दौड़ती हुई लड़के की बहन आई. उसने चश्मा दिलाने के लिए अपनी जेबें टटोलीं. कुछ पैसे जोड़े और न जाने क्यूँ भाई को चुपचाप गोद में उठाकर घर की ओर चल दी. पैसे कम पड़ गए होंगे, घर से पैसे लेने गई होगी, यह सोचकर मैं नाश्ता करने अन्दर आ गया. नाश्ता करते वक़्त भी वह लड़का मेरी आँखों के सामने नाच रहा था. बहन की गोद में पाँव पटकता जाता और बेतहाशा रोता जाता. जल्दी से नाश्ता खत्म कर, मैं बाहर आया तो देखा न तो वो बच्चा था, न वो गुब्बारे वाला. हाँ, गली के कोने में कुछ बच्चे खेल ज़रूर रहे थे. सुनहरे बाल वाले बच्चे का घर एक घर छोड़कर था, इसलिए उसके रोने की आवाज़ मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी. वह अभी भी रो रहाथा. न जाने क्यों उसकी हर एक चीख मेरे दिल में सवाल पैदा कर रही थी. क्या उस लड़के को चश्मा मिला? अगर हाँ, तो वो रो क्यों रहा था...???

- देवास दीक्षित
कृत